The Hindu Temple

Nidhivan Vrindavan: वो रहस्यमयी जंगल जहाँ रात में थिरकते हैं बांके बिहारी

Nidhivan Vrindavan: वृंदावन की उन गलियों में घूमते हुए जहाँ हर कोने से बांसुरी की धुन गूँजती है, एक ऐसी जगह है जिसका नाम सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। निधिवन – वो पवित्र वन जहाँ भगवान श्रीकृष्ण आज भी अपनी राधा और गोपियों के साथ रासलीला करते हैं। यहाँ का हर पेड़, हर पत्ता, हर हवा का झोंका एक अनसुलझी पहेली है। लोग दिन में आते हैं, दर्शन करते हैं, लेकिन जैसे ही सूरज ढलता है, पूरा इलाका खाली हो जाता है। न कोई इंसान, न पक्षी, न बंदर – सिर्फ़ वो रहस्य जो सदियों से लोगों को अपनी ओर खींचता आ रहा है।

Nidhivan vrindavan
Nidhivan vrindavan

निधिवन और बांके बिहारी मंदिर का गहरा रिश्ता

निधिवन कोई साधारण जंगल नहीं है। यही वो स्थान है जहाँ स्वयं बांके बिहारी जी अपने लीला स्थल के रूप में विराजते हैं। मान्यता है कि ठाकुर जी का मूल स्वरूप यहीं प्रकट हुआ था। स्वामी हरिदास जी जब यहाँ तपस्या कर रहे थे, तब उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर बांके बिहारी एक ही विग्रह में राधा-कृष्ण के रूप में प्रकट हुए। इसलिए निधिवन को बांके बिहारी जी का हृदय स्थल कहा जाता है। जो भक्त सच्चे मन से यहाँ आता है, उसे ठाकुर जी की कृपा अवश्य मिलती है।

रात में जीवंत हो उठता है पूरा जंगल

लोग कहते हैं कि शाम ढलते ही निधिवन का असली रूप सामने आता है। सूर्यास्त के बाद कोई भी यहाँ नहीं रुकता। मंदिर के पट बंद होते ही पुजारी रंग महल में ठाकुर जी के लिए सारी सामग्री सजाकर चले जाते हैं – माखन-मिश्री, पान, साड़ी, चूड़ियाँ, इत्र, तैयार बिस्तर। सुबह जब पुजारी लौटते हैं तो बिस्तर करीने से सजा हुआ, मिठाई चखी हुई और पान के पत्ते चबाए हुए मिलते हैं। घुंघरू और मंजीरा की आवाजें, नूपुर की झंकार – कई लोग दावे के साथ कहते हैं कि उन्होंने ये सब सुना है।

तुलसी के उन अनोखे पेड़ों की कहानी

यहाँ हजारों की संख्या में वन तुलसी के पेड़ हैं। इनकी खासियत ये है कि ये हमेशा जोड़े में होते हैं – एक बड़ा, एक छोटा। मान्यता है कि ये कोई साधारण पेड़ नहीं, बल्कि गोपियाँ हैं जो दिन में पेड़ का रूप धारण कर लेती हैं। इनके तने और जड़ें अंदर से पूरी तरह खोखले हैं। जड़ें ज़मीन से ऊपर उठी हुई हैं और पत्ते कभी नहीं झड़ते। पानी कोई नहीं डालता, फिर भी साल भर हरे-भरे रहते हैं। रात में ये पेड़ अपना स्थान बदल लेते हैं। कई लोगों ने प्रयोग के लिए धागे बांधे, लेकिन सुबह धागे ज़मीन पर पड़े मिले और पेड़ कहीं और।

इन पेड़ों पर न कोई घोंसला बनता है, न कीड़े लगते हैं। अगर कोई इनकी पत्ती या टहनी घर ले जाने की कोशिश करता है तो उसे भयानक परिणाम भुगतने पड़ते हैं। यही कारण है कि स्थानीय लोग इन्हें छूते तक नहीं।

रंग महल और रासलीला का साक्षी कुआँ

निधिवन के अंदर रंग महल है जहाँ ठाकुर जी के लिए हर रात श्रृंगार किया जाता है। पास ही एक प्राचीन कुआँ है। कहा जाता है कि इसी कुएँ में राधा-कृष्ण और गोपियाँ रासलीला के बाद विश्राम करते हैं। कई बार लोगों ने रात में इस कुएँ के आसपास चमकती रोशनी और मधुर स्वर सुनने का दावा किया है।

यहाँ शाम के बाद क्यों नहीं रुकता कोई?

एक पुरानी कथा है कि जो भी सूरज डूबने के बाद निधिवन में रुककर रासलीला देखने की कोशिश करता है, वह या तो पागल हो जाता है, या अंधा, बहरा या गूंगा। कई लोग छिपकर देखने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन सुबह या तो वे पागल होकर मिले या फिर कभी वापस नहीं आए। इसलिए आज तक कोई भी वैज्ञानिक या शोधकर्ता इस रहस्य को पूरी तरह नहीं सुलझा पाया है।

वृंदावन निधिवन आने का सबसे अच्छा समय

अगर आप निधिवन के दर्शन करना चाहते हैं तो अक्टूबर से मार्च तक का समय सबसे उत्तम है। होली के दिनों में यहाँ का नजारा देखते ही बनता है। मानसून में भी यहाँ की हरियाली देखने लायक होती है। गर्मियों में यहाँ काफी गर्मी पड़ती है इसलिए उस समय कम लोग आते हैं।

निधिवन कैसे पहुँचें?

वृंदावन पहुँचना बहुत आसान है। दिल्ली से मात्र 160 किमी दूर है। मथुरा जंक्शन रेलवे स्टेशन यहाँ से सिर्फ 12 किमी है। आगरा से 70 किमी और जयपुर से लगभग 240 किमी। निधिवन बांके बिहारी मंदिर से पैदल दूरी पर ही है। एक बार वृंदावन आ जाएँ तो ऑटो या ई-रिक्शा आसानी से मिल जाता है।

निधिवन कोई साधारण पर्यटन स्थल नहीं है। यह वो जगह है जहाँ आस्था और रहस्य एक साथ साँस लेते हैं। यहाँ आकर लगता है कि सचमुच ठाकुर जी आज भी अपनी लीलाओं में रमे हैं। एक बार जो यहाँ आता है, बार-बार आने को जी चाहता है।

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