Ramayana Mythological Story: गंगा अवतरण और जह्नु ऋषि की अनोखी कथा
Ramayana Mythological Story: जब भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में अवतार लिया, तभी से उनके जीवन में दिव्य लीलाओं की शुरुआत हो चुकी थी। ऋषियों के यज्ञ की रक्षा और दिव्यास्त्रों की शिक्षा के उद्देश्य से महर्षि विश्वामित्र Maharishi Vishwamitra for the purpose of education उन्हें अयोध्या से वन की ओर ले गए। यात्रा के दौरान उन्होंने राम और लक्ष्मण को कई पावन कथाएँ सुनाईं, जिनमें गंगा के पृथ्वी पर आगमन की कथा विशेष रूप से उल्लेखनीय थी। इसी कथा के माध्यम से उन्होंने जह्नु ऋषि और गंगा के बीच घटी आश्चर्यजनक घटना का वर्णन किया।

गंगा अवतरण का प्रारम्भ
महर्षि विश्वामित्र ने विश्राम करते हुए राम और लक्ष्मण को बताया कि किस प्रकार महाराज सगर ने अश्वमेध यज्ञ आरम्भ किया था। देवराज इन्द्र को भय था कि कहीं सगर चक्रवर्ती सम्राट न बन जाएँ। इसलिए उन्होंने यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया और कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचा दिया। घोड़े की खोज में निकले सगर के साठ हजार पुत्र कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाने लगे। उनके इस अनादर से कुपित होकर कपिल मुनि ने अपनी दिव्य शक्ति से उन सभी को भस्म Burn them all with divine power कर दिया।
अंशुमान की खोज और मार्गदर्शन
जब पुत्रों का कोई समाचार न मिला, तब महाराज सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को खोज के लिए भेजा। अंशुमान पाताल पहुँचे और वहाँ अपने चाचाओं की राख देखकर अत्यंत दुखी हुए। उन्होंने तर्पण के लिए जल की खोज की, परंतु कोई जलाशय नहीं मिला। तभी गरुड़जी ने प्रकट होकर बताया कि इन दिव्य आत्माओं का उद्धार केवल गंगा These divine souls can only be liberated by the Ganges के पवित्र जल से ही संभव है। अंशुमान घोड़े को लेकर अयोध्या लौट आए, जिससे यज्ञ पूरा हुआ, परंतु गंगा को पृथ्वी पर लाने का उपाय न मिल सका।
सगर वंश का तप और भगीरथ का संकल्प
सगर के पश्चात अंशुमान After Sagar came Anshuman और फिर राजा दिलीप ने गंगा के अवतरण के लिए कठोर तप किया, किंतु सफलता नहीं मिली। अंततः भगीरथ ने राज्य मंत्रियों को शासन सौंपकर एक पैर के अंगूठे पर खड़े होकर दीर्घकालीन तपस्या की। उनकी कठोर साधना से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने वरदान दिया, पर साथ ही चेताया कि गंगा का वेग पृथ्वी सहन नहीं कर सकेगी। इस कारण भगीरथ को भगवान शिव की आराधना करनी होगी।
शिवजी द्वारा गंगा का वेग शांत करना
भगीरथ ने शिवजी की तपस्या की और अंततः Bhagiratha performed penance to Lord Shiva and finally महादेव प्रसन्न हुए। उन्होंने आश्वासन दिया कि गंगा को वे अपनी जटाओं में धारण करेंगे। गंगा जी के भीतर स्वर्ग से पृथ्वी पर आने का अभिमान था, और उन्होंने सोचा कि वे अपने वेग से शिवजी तक को बहा देंगी। परंतु महादेव ने उनके वेग को नियंत्रित करते हुए उनकी धाराओं को अपनी जटाओं में रोक लिया। भगीरथ की पुनः स्तुति के बाद शिवजी ने गंगा को बिंदुसर तीर्थ में छोड़ा, जहाँ से वे सात धाराओं में विभक्त होकर पृथ्वी पर बहने लगीं।
जह्नु ऋषि द्वारा गंगा का अवरोध
गंगा भगीरथ के पीछे-पीछे चल रही थीं कि रास्ते में वे जह्नु ऋषि की यज्ञशाला Jahnu Rishi’s sacrificial hall तक पहुँचीं। उनके प्रबल वेग से यज्ञ सामग्री बहने लगी, जिससे क्रोधित होकर जह्नु ऋषि ने पूरी गंगा को एक ही बार में पी लिया। देवताओं और ऋषियों ने जब उनसे प्रार्थना की, तब जह्नु ने अपने कान से गंगा को पुनः प्रकट किया और उन्हें पुत्री रूप में स्वीकार किया। तभी से गंगा को जाह्नवी नाम से भी जाना जाता है।
गंगा से सगर पुत्रों का उद्धार
जब गंगा पुनः बहकर पाताल पहुँचीं और सगर के पुत्रों की राख को स्पर्श किया, तब वे सभी मोक्ष को प्राप्त हुए। भगीरथ के प्रयास को देखते हुए ब्रह्माजी ने आशीर्वाद Lord Brahma gave his blessings दिया कि गंगा के जल का स्पर्श सर्वपाप विनाशक होगा और गंगा हमेशा भगीरथ के नाम से जुड़ी रहेंगी। इस प्रकार इक्ष्वाकु कुल की बहुप्रतीक्षित कामना पूर्ण हुई और गंगा पृथ्वी पर त्रिपथगा के रूप में प्रतिष्ठित हुईं।

