Mokshada Ekadashi :एक व्रत जो पितरों को नरक से मुक्त कर स्वर्ग पहुँचाता है
Mokshada Ekadashi: हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत सबसे पवित्र और फलदायी माना जाता है। इनमें से मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी का स्थान बहुत ऊँचा है क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवद्गीता का अमृत उपदेश दिया था। इसलिए इसे गीता जयंती भी कहते हैं। लेकिन इस एकादशी का एक और नाम है – मोक्षदा एकादशी। इसका सीधा अर्थ है “मोक्ष प्रदान करने वाली”। मान्यता है कि इस दिन किया गया उपवास और पूजन न केवल स्वयं के सारे पाप काटता है, बल्कि पितरों को भी नरक के कष्टों से मुक्ति दिलाकर स्वर्ग पहुँचाता है।

मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा क्या कहती है?
प्राचीन काल में गोकुल नाम का एक सुंदर नगर था। वहाँ वैखानस नाम के धर्मात्मा राजा राज्य करते थे। प्रजा उन्हें पुत्र की तरह मानती थी और राजा भी प्रजा का पूरा खयाल रखते थे। एक रात राजा को स्वप्न आया कि उनके मृत पिता नरक में भयंकर यातनाएँ सह रहे हैं। पिता ने पुत्र से करुण पुकार की – “मुझे यहाँ से छुड़ाओ।”
सुबह उठते ही राजा बेचैन हो गए। वे तुरंत विद्वान ब्राह्मणों के पास पहुँचे और सारा स्वप्न सुनाया। बोले, “अब न राज्य में रस है, न धन में, न पुत्र-पत्नी में। मेरे पिता नरक में तड़प रहे हैं, मैं कैसे सुखी रहूँ? कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पितरों का उद्धार हो।”
पर्वत मुनि ने बताया नरक जाने का कारण
ब्राह्मणों ने कहा, “नजदीक ही पर्वत मुनि का आश्रम है, वे भूत-भविष्य-वर्तमान के ज्ञाता हैं।” राजा तत्काल आश्रम पहुँचे। वहाँ अनेक ऋषि-मुनि तपस्या में लीन थे। राजा ने पर्वत मुनि को दण्डवत प्रणाम किया और सारी व्यथा सुनाई।
मुनि ने ध्यान लगाया और बोले, “राजन्! तुम्हारे पिता पूर्व जन्म में स्त्री के साथ अन्याय करने के कारण नरक भोग रहे हैं। उन्होंने एक पत्नी के साथ रमण तो किया, पर दूसरी पत्नी के ऋतुकाल में भी उसे स्पर्श नहीं किया। यही पाप उन्हें ले डूबा।”
राजा ने करबद्ध प्रार्थना की, “महाराज, कोई उपाय बतलाइए।”
एक पुत्र ही होता है जो माता-पिता और पितरों का उद्धार करता है।”
एकादशी व्रत से मिली मुक्ति
पर्वत मुनि मुस्कुराए और बोले, “मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का विधिपूर्वक उपवास करो। रात्रि जागरण करो, भगवान दामोदर की पूजा करो और उपवास का सारा पुण्य अपने पितरों को संकल्प करके अर्पित कर दो। इस एक व्रत के प्रभाव से तुम्हारे पिता तत्काल नरक से मुक्त होकर स्वर्ग जाएँगे।”
राजा ने ठीक वैसा ही किया। परिवार सहित कठोर उपवास रखा, रात भर भजन-कीर्तन किया। अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराया, दान दिया और सारा पुण्य पिता को समर्पित कर दिया।
अचानक आकाशवाणी हुई और राजा के पिता दिव्य रूप में प्रकट हुए। उन्होंने पुत्र को आशीर्वाद दिया – “वत्स! तुम्हारे इस पुण्य से मैं नरक के बन्धन से मुक्त हो गया। अब मैं स्वर्ग जा रहा हूँ। तेरा कल्याण हो!” यह कहकर वे विमान पर आरूढ़ हो स्वर्गलोक चले गए।
आज भी क्यों रखते हैं लोग यह व्रत?
तब से यह मान्यता प्रचलित हुई कि मोक्षदा एकादशी का व्रत करने मात्र से सैकड़ों यज्ञों और तप का फल मिलता है। सारे पाप नष्ट होते हैं, कुल के पितर तृप्त होते हैं और अंत में स्वयं को भी परम गति प्राप्त होती है। खासकर जिनके घर में पितरों की अशांति के लक्षण दिखते हैं – बार-बार बुरे सपने आना, घर में कलह रहना, व्यापार में रुकावट आदि – उनके लिए यह व्रत रामबाण है।
इस बार मोक्षदा एकादशी कब है? (2025)
साल 2025 में मोक्षदा एकादशी 11 दिसंबर, गुरुवार को है। पारण 12 दिसंबर को सुबह 7:20 से 9:25 के बीच करना शुभ रहेगा। इस दिन गीता पाठ और भगवान विष्णु की विशेष पूजा का भी बड़ा महत्व है।
इस एकादशी पर सच्चे मन से उपवास करने वाला व्यक्ति न केवल अपने लिए, बल्कि अपने सात पुश्त के पितरों के लिए भी स्वर्ग के द्वार खोल देता है। इसलिए इसे “पितरों की मुक्ति का महाव्रत” भी कहते हैं।

