Vindhyavasini Temple: जानिए, यूपी के मिर्जापुर में स्थित मां विंध्यवासिनी मंदिर के महत्व और रहस्य के बारे में…
Vindhyavasini Temple: माँ विंध्यवासिनी मंदिर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के निकट, विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं के बीच, गंगा नदी से कुछ ही दूरी पर स्थित है। माँ विंध्यवासिनी विंध्याचल नामक तीर्थस्थल पर विराजमान हैं। शक्तिपीठों में इस महातीर्थ का विशेष महत्व है। गंगा तट पर स्थित यह महातीर्थ भारत के 51 शक्तिपीठों में प्रथम और अंतिम है। यहीं महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती (Mahalakshmi, Mahakali and Mahasaraswati) विराजमान थीं। यहाँ माँ भगवती के दर्शन हेतु लोग दूर-दूर से आते हैं।

शिव पुराण में माँ विंध्यवासिनी को सती माना गया
शिव पुराण में माँ विंध्यवासिनी को सती माना गया है, जबकि श्रीमद्भागवत (Shrimad Bhagwat) में उन्हें नंदबाबा की पुत्री बताया गया है। शास्त्रों में माँ कृष्णानुजा और वनदुर्गा का अन्य नामों से भी उल्लेख मिलता है। इस महाशक्तिपीठ में वैदिक और वाममार्ग पद्धति से पूजा की जाती है।
कई स्थानों पर विभिन्न अंगों की प्रतीकात्मक पूजा की जाती है
शास्त्रों में कहा गया है कि विंध्याचल के बाहर आदिशक्ति देवी (Adishakti Devi) अपने पूर्ण रूप में कभी नहीं दिखाई देतीं, क्योंकि विंध्याचल ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहाँ देवी की संपूर्ण मूर्ति के दर्शन होते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि देवी के विभिन्न स्वरूपों की पूजा अलग-अलग शक्तिपीठों में प्रतीक के रूप में की जाती है।
छत पर लगे ध्वज का रहस्य
माँ भगवती शारदीय और वासंतिक नवरात्रि के दौरान मंदिर की छत पर लगे ध्वज में विराजमान होकर नौ दिन बिताती हैं। इस स्वर्ण ध्वज की खासियत इसका सूर्य चंद्र पताकिनी नाम है। माँ विंध्यवासिनी देवी (Mother Vindhyavasini Devi) का ध्वज ही एकमात्र ऐसा ध्वज है जिस पर यह प्रतीक चिन्ह अंकित है।
अष्टभुजा देवी (Ashtabhuja Devi) विराजमान
यंत्र के पश्चिमी कोने में उत्तर दिशा की ओर मुख करके आठ भुजाओं वाली देवी विराजमान हैं। अपनी आठ भुजाओं से वे सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करती हैं और सभी दिशाओं में फैले अनुयायियों की रक्षा करती हैं। सोलह पंखुड़ियों वाला एक अष्टभुजा कमल विद्यमान बताया गया है। उसके बाद चौबीस पंखुड़ियाँ हैं। ब्रह्मा के रूप में विराजमान महादेवी अष्टभुजा मध्य में स्थित हैं।