Story of Gayatri Mata: यहाँ जानें कैसे हुई वेदमाता की दिव्य उत्पत्ति और उनकी आध्यात्मिक महिमा…
Story of Gayatri Mata: गायत्री माता को सनातन संस्कृति में वेदमाता के रूप में सम्मान दिया जाता है, क्योंकि माना जाता है कि चारों वेद उन्हीं से उद्भूत हुए हैं। इसीलिए उनका मुख्य मंत्र संपूर्ण वेदों का सार माना गया है। विश्वास है कि जिस आध्यात्मिक पुण्य की प्राप्ति चारों वेदों का अध्ययन करने से होती है, वही लाभ केवल गायत्री मंत्र के गहन चिंतन से प्राप्त हो जाता है। भारतीय अध्यात्म में गायत्री को संस्कृति की जननी (divine wisdom) कहा जाता है, जो मानव जीवन को सत्य, ज्ञान और प्रकाश की दिशा में प्रेरित करती हैं।
गायत्री माता (Gayatri Mata) का स्वरूप और महत्व
ज्ञानेश्वरी देवी (Gayatri Mata) को वेद, शास्त्र और सभी श्रुतियों की आदिशक्ति माना जाता है। वेदों की उत्पत्ति के कारण उन्हें वेदमाता का स्वरूप कहा गया है और त्रिदेव की आराध्या होने से उन्हें देवमाता भी संबोधित किया जाता है। ज्ञान, ऊर्जा और चेतना की अधिष्ठात्री (spiritual essence) देवी होने के कारण उन्हें ज्ञान-गंगा माना गया है। ब्रह्मा की सहधर्मिणी के रूप में भी उनका वर्णन मिलता है और उन्हें पार्वती, सरस्वती तथा लक्ष्मी का संयुक्त अवतार भी कहा गया है।
गायत्री विवाह की कथा
एक प्रसंग के अनुसार, जब ब्रह्मा जी एक विशेष यज्ञ (sacred ritual) के लिए प्रस्थान कर रहे थे, तो उनके साथ सहधर्मचारिणी का होना आवश्यक था। उस समय सावित्री उनकी संगिनी के रूप में उपस्थित नहीं थीं, जिसके कारण उन्होंने यज्ञ के पूर्ण फल की प्राप्ति हेतु वहीं विद्यमान ज्ञानेश्वरी देवी से विवाह किया। यह प्रसंग दर्शाता है कि यज्ञ, धर्म और कर्म के हर शुभ कार्य में पवित्र ऊर्जा का साथ कितना आवश्यक माना गया है।
गायत्री माता का अवतरण
सृष्टि के प्रारंभिक काल में ब्रह्मा जी पर दिव्य प्रकाश के रूप में ज्ञानेश्वरी देवी मंत्र प्रकट हुआ। ज्ञानेश्वरी देवी की अनुकंपा से वे चारों मुखों से चार वेदों का उच्चारण कर सके। प्रारंभिक काल (ancient heritage) में यह ज्ञान केवल देवताओं तक सीमित रहा, लेकिन कठोर तप के द्वारा विश्वामित्र ने इसे पृथ्वी पर मानव समाज तक पहुँचाया। जिस प्रकार भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर अवतरित कराया, उसी प्रकार विश्वामित्र ने ज्ञानेश्वरी देवी मंत्र को सर्वसाधारण के लिए सुलभ बनाया।
गायत्री जयंती का पर्व
ज्ञानेश्वरी देवी जयंती की तिथि को लेकर विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न परंपराएं प्रचलित हैं। कई स्थानों पर इसे गंगा दशहरा के दिन मनाया जाता है, तो कहीं ज्येष्ठ मास की एकादशी को इसका उत्सव (festive tradition) होता है। इसके अतिरिक्त श्रावण पूर्णिमा को भी अनेक क्षेत्रों में ज्ञानेश्वरी देवी जयंती के रूप में स्वीकार किया जाता है। यह पर्व केवल उत्सव नहीं, बल्कि वेदों की देवी के ज्ञान और ऊर्जा का स्मरण करने का माध्यम है।
गायत्री माता की महिमा और आध्यात्मिक प्रभाव
अथर्ववेद में वेदों की देवी को आयु, प्राण, ऊर्जा, ऐश्वर्य और तेज प्रदान करने वाली अधिष्ठात्री शक्ति कहा गया है। महर्षि व्यास ने कहा है कि जैसे दूध में घी और पुष्पों में मधु सार रूप में विद्यमान रहते हैं, उसी प्रकार सभी वेदों का सार ज्ञानेश्वरी देवी में समाहित है। ज्ञानेश्वरी देवी का जप आत्मा को उसी प्रकार पवित्र करता है जैसे गंगा शरीर के पापों को धो देती है। विश्वामित्र के अनुसार, ब्रह्मा द्वारा निकाला गया त्रिपदी ज्ञानेश्वरी देवी मंत्र सभी मंत्रों में श्रेष्ठ है, जो मनुष्य को पापों से मुक्त कर आध्यात्मिक उन्नति (spiritual awakening) की ओर ले जाता है।