The Hindu Temple

Latu Devta Temple Uttarakhand: उत्तराखंड का रहस्यमयी लाटू देवता मंदिर, जहां दर्शन भी नियमों में बंधे हैं

Latu Devta Temple Uttarakhand: उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है, क्योंकि यहां कदम-कदम पर आस्था, परंपरा और इतिहास से जुड़े मंदिर देखने को मिलते हैं। लेकिन इन सभी के बीच एक ऐसा मंदिर भी है, जो अपनी अनोखी मान्यताओं और रहस्यमयी परंपराओं के कारण सबसे अलग पहचान रखता है। यह मंदिर है चमोली जिले में स्थित लाटू The Latu temple is located in Chamoli district देवता मंदिर, जहां आम श्रद्धालु तो दूर, पुजारी भी बिना आंख ढंके पूजा नहीं कर सकते। इस मंदिर से जुड़ी परंपराएं जितनी अनोखी हैं, उतनी ही चौंकाने वाली भी हैं।

Latu devta temple uttarakhand

लाटू देवता मंदिर का स्थान और परिवेश

लाटू देवता मंदिर उत्तराखंड के चमोली The temple is located in Chamoli, Uttarakhand जिले के देवाल ब्लॉक में स्थित वाण नामक छोटे से गांव में है। यह गांव नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान के आसपास बसा हुआ है और अपनी प्राकृतिक सुंदरता, शांत वातावरण और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए जाना जाता है। ऊंचे पहाड़, घने जंगल और शुद्ध हवा इस स्थान को विशेष बनाते हैं। वाण गांव में पहुंचते ही ऐसा महसूस होता है जैसे समय थम गया हो और मन अपने आप शांत होने लगे।

आम श्रद्धालुओं को प्रवेश क्यों नहीं

इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता The temple’s greatest feature यही है कि इसके मुख्य गर्भगृह में किसी भी आम व्यक्ति को प्रवेश की अनुमति नहीं है। मान्यता है कि यहां नागराज अपनी दिव्य मणि के साथ विराजमान हैं। कहा जाता है कि इस मणि से निकलने वाली रोशनी इतनी तेज होती है कि उसे देखने वाला व्यक्ति अंधा हो सकता है। इसी कारण न केवल भक्तों का, बल्कि स्वयं पुजारी का भी सीधे दर्शन करना वर्जित है।

आंखों पर पट्टी बांधकर होती है पूजा

लाटू देवता मंदिर में पूजा की प्रक्रिया The process of worship in the temple of the deity भी सामान्य मंदिरों से बिल्कुल अलग है। साल में केवल एक बार पुजारी गर्भगृह में प्रवेश करता है और वह भी आंखों पर पट्टी बांधकर तथा मुंह पर कपड़ा लपेटकर। इसके पीछे मान्यता है कि न तो आंखों से रोशनी पहुंचे और न ही सांस की गंध नागराज तक जाए। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और स्थानीय लोग इसे पूरी श्रद्धा के साथ निभाते हैं।

साल में एक दिन खुलते हैं मंदिर के पट

यह मंदिर प्रतिदिन दर्शन Temple open for darshan daily के लिए नहीं खुलता। वैशाख महीने की पूर्णिमा के दिन लाटू देवता मंदिर के पट खोले जाते हैं। इस दिन आसपास के गांवों और दूर-दराज के क्षेत्रों से श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं। भक्त मंदिर के बाहर से ही दर्शन करते हैं और इसे पुण्यदायी माना जाता है। यह दिन स्थानीय लोगों के लिए किसी बड़े धार्मिक उत्सव से कम नहीं होता।

लाटू देवता से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार लाटू देवता, देवी नंदा के भाई माने जाते हैं। देवी नंदा को माता पार्वती का रूप माना जाता है। कहा जाता है कि देवी नंदा के विवाह के समय लाटू देवता उनके साथ कैलाश पर्वत की यात्रा पर गए थे। रास्ते में प्यास लगने पर उन्होंने अनजाने में एक झोपड़ी में रखे He unknowingly placed it in a hut दो बर्तनों से शराब पी ली, जिसके बाद वे उग्र हो गए। इससे नाराज होकर देवी नंदा ने उन्हें श्राप दिया और वाण गांव में रहने का आदेश दिया। बाद में पश्चाताप करने पर देवी ने उन्हें वहीं पूजे जाने का वरदान दिया, लेकिन इस शर्त के साथ कि कोई भी उन्हें सीधे नहीं देख सकेगा।

आस्था और रहस्य का अनोखा संगम

लाटू देवता मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह आस्था, भय, विश्वास और रहस्य का अद्भुत A wonderful blend of faith, fear, belief, and mystery संगम है। यहां आने वाले श्रद्धालु न सिर्फ पूजा के लिए आते हैं, बल्कि इस अनोखी परंपरा को नजदीक से देखने और महसूस करने के लिए भी पहुंचते हैं। मंदिर का वातावरण अत्यंत शांत, रहस्यमयी और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर है। उत्तराखंड में कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, लेकिन लाटू देवता मंदिर जैसी अनूठी और रहस्यमयी जगहें बहुत कम देखने को मिलती हैं।

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