Rukmini Ashtami fast : सौभाग्य, समृद्धि और दांपत्य सुख का पावन पर्व
Rukmini Ashtami fast : रुक्मिणी अष्टमी व्रत हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और आस्था से जुड़ा हुआ पर्व है। यह व्रत देवी रुक्मिणी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी और माता लक्ष्मी का अवतार माना गया है। यह पर्व विशेष रूप से उन श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण है, जो अपने जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और वैवाहिक स्थिरता की कामना करते हैं। भारत के कई राज्यों जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और मध्य भारत के क्षेत्रों में यह पर्व परंपरागत श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
रुक्मिणी अष्टमी का धार्मिक आधार
हिंदू धर्म में अष्टमी तिथि को अत्यंत शुभ माना गया है। मान्यता है कि इसी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था और देवी रुक्मिणी का अवतरण भी इसी दिन हुआ। रुक्मिणी जी को विदर्भ की राजकुमारी माना जाता है, जिन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को अपने जीवनसाथी के रूप में चुना। उनका विवाह प्रेम, साहस और धर्म की मिसाल माना जाता है। इसी कारण यह व्रत केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और पारिवारिक मूल्यों का भी प्रतीक है।
वर्ष 2025 में रुक्मिणी अष्टमी की तिथि
वर्ष 2025 में रुक्मिणी अष्टमी का पावन पर्व 12 दिसंबर को मनाया जाएगा। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत रखती हैं। वहीं अविवाहित कन्याएं अच्छे संस्कारों वाले और योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए पूरे विधि-विधान से इस व्रत का पालन करती हैं।
सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक व्रत
देवी रुक्मिणी को माता लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है, जो धन, वैभव और स्थिरता की देवी हैं। ऐसी मान्यता है कि जो श्रद्धालु सच्चे मन से रुक्मिणी अष्टमी का व्रत करते हैं, उनके जीवन में आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। यह व्रत जीवन में स्थायित्व और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
अखंड सौभाग्य की कामना
यह व्रत विशेष रूप से महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। विवाहित स्त्रियां इसे अपने अखंड सौभाग्य, पति की दीर्घायु और दांपत्य जीवन में मधुरता बनाए रखने के उद्देश्य से करती हैं। मान्यता है कि देवी रुक्मिणी की कृपा से वैवाहिक जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और आपसी प्रेम मजबूत होता है।
मनचाहा जीवनसाथी पाने की मान्यता
अविवाहित कन्याओं के लिए रुक्मिणी अष्टमी का व्रत अत्यंत फलदायी माना गया है। धार्मिक विश्वास है कि जिस प्रकार देवी रुक्मिणी को भगवान श्रीकृष्ण जैसा आदर्श जीवनसाथी प्राप्त हुआ, उसी प्रकार यह व्रत करने वाली कन्याओं को भी योग्य, संस्कारी और प्रेमपूर्ण जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।
संतान सुख से जुड़ी आस्था
ऐसे दंपत्ति जिन्हें संतान सुख की कामना होती है, वे भी यह व्रत श्रद्धा से करते हैं। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न, जिन्हें कामदेव का अवतार माना जाता है, की कृपा से संतान संबंधी समस्याओं का समाधान होता है और परिवार में खुशियों का आगमन होता है।
रुक्मिणी अष्टमी व्रत की पूजा विधि
इस व्रत की शुरुआत प्रातःकाल स्नान से होती है। इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर देवी रुक्मिणी और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। पूजा में फल, फूल, मिठाई और पारंपरिक प्रसाद अर्पित किया जाता है। दिनभर उपवास रखकर भगवान का स्मरण, भजन और मंत्र जाप किया जाता है। संध्या समय कथा श्रवण और आरती का विशेष महत्व होता है।
भक्ति और श्रद्धा से जुड़ा पर्व
रुक्मिणी अष्टमी केवल एक व्रत नहीं बल्कि भक्ति, प्रेम और समर्पण का पर्व है। इस दिन मंदिरों में विशेष आयोजन किए जाते हैं, जहां भक्तजन सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी की लीलाओं का स्मरण कर जीवन को धर्म और मर्यादा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है।
रुक्मिणी अष्टमी से जुड़ी प्रमुख मान्यताएं
इस दिन शुभ मुहूर्त में पूजा करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी इस व्रत को रख सकते हैं। दिनभर संयम, पवित्रता और भक्ति का पालन करना आवश्यक होता है। प्रद्युम्न के पूजन को भी विशेष शुभ माना गया है, जिससे प्रेम और आकर्षण में सकारात्मकता आती है।
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
रुक्मिणी अष्टमी का पर्व समाज में पारिवारिक मूल्यों, नारी सम्मान और दांपत्य जीवन की गरिमा को दर्शाता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम, विश्वास और समर्पण जीवन को सुखमय बनाते हैं। इसी कारण यह व्रत आज भी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है।