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Ramayana Mythological Story: पुत्र वियोग का शाप और राम वनवास का रहस्यमय कारण

Ramayana Mythological Story: धरती पर मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में अवतरित भगवान विष्णु के अवतार श्रीरामचंद्रजी का जीवन केवल The life of Shri Ramchandraji is only  एक राजकुमार की कथा नहीं, बल्कि धर्म, कर्म और भाग्य के गहन सिद्धांतों से जुड़ा हुआ है। राक्षसराज रावण के अंत और धर्म की स्थापना के लिए श्रीराम को एक दिव्य लीला के अंतर्गत चौदह वर्षों का वनवास स्वीकार करना पड़ा। यह वनवास केवल कैकेयी के वरदानों का परिणाम नहीं था, बल्कि इसके पीछे महाराज दशरथ के पूर्व कर्मों से जुड़ा एक गूढ़ रहस्य छिपा हुआ था, जिसे उन्होंने अपने जीवन के अंतिम समय में रानी कौशल्या को बताया।

Ramayana mythological story

वनवास के बाद अयोध्या का शोक

श्रीराम, लक्ष्मण और सीताजी के वन प्रस्थान के पश्चात अयोध्या शोक Ayodhya mourned after the departure में डूब गई। महाराज दशरथ के लिए पुत्र वियोग असहनीय हो गया। वे बार-बार मूर्च्छित हो जाते और अपने प्रिय पुत्र राम को स्मरण कर विलाप करते रहते। जब सारथी सुमंत ने वन में राम को छोड़कर लौटने का समाचार सुनाया, तब दशरथ का हृदय पूरी तरह टूट गया। उन्हें ऐसा प्रतीत होने लगा मानो उनका जीवन उद्देश्य ही समाप्त हो गया हो।

कौशल्या के कटु वचन

पति की यह दशा देखकर भी रानी कौशल्या का हृदय पीड़ा से भर उठा। पुत्र राम और बहू सीता के वन कष्टों की कल्पना मात्र से उनका धैर्य टूट गया। उन्होंने व्यथित होकर महाराज दशरथ King Dasharatha, feeling distressed को कठोर वचन कहे और उन्हें इस वनवास का उत्तरदायी ठहराया। कौशल्या का यह आक्रोश वस्तुतः एक मां के हृदय की पीड़ा थी, जो अपने पुत्र को कष्ट में देखकर फूट पड़ी थी।

करुणा में बदला क्रोध

दशरथ के विनीत और दीन स्वर में क्षमा याचना An apology in his voice करने पर कौशल्या का क्रोध शांत हो गया। उन्हें अपने कठोर शब्दों पर पश्चाताप हुआ। उन्होंने स्वीकार किया कि पुत्र वियोग के दुख ने उनका विवेक हर लिया था। इसी संवाद के दौरान महाराज दशरथ ने स्वीकार किया कि यह सब उनके अपने कर्मों का फल है और इसके पीछे एक पुरानी घटना छिपी हुई है।

दशरथ द्वारा अतीत का उद्घाटन

महाराज दशरथ ने कौशल्या को अपने युवावस्था के उस प्रसंग Kausalya remembers that incident of her youth का वर्णन किया, जब वे शिकार के लिए सरयू नदी के तट पर गए थे। संध्या के समय हाथी की गरज समझकर उन्होंने शब्दभेदी बाण चला दिया। किंतु वह हाथी नहीं, बल्कि जल भरते हुए एक युवक की आवाज थी। बाण लगते ही युवक के करुण शब्दों से दशरथ को अपने भयंकर अपराध का ज्ञान हुआ।

श्रवण कुमार का करुण अंत

वह युवक श्रवण कुमार Young Shravan Kumar था, जो अपने नेत्रहीन माता-पिता के लिए जल लेने आया था। बाण लगने से घायल श्रवण ने अपने माता-पिता की चिंता व्यक्त की और जल पिलाने की अंतिम इच्छा प्रकट की। दशरथ ने अत्यंत पश्चाताप के साथ बाण निकाला, परंतु उसी क्षण श्रवण ने प्राण त्याग दिए। यह दृश्य दशरथ के जीवन का सबसे बड़ा आघात बन गया।

वृद्ध माता-पिता का विलाप

दशरथ जब श्रवण के माता-पिता के पास पहुंचे और उन्हें सत्य बताया, तो दोनों वृद्धों का हृदय टूट गया। पुत्र वियोग में उन्होंने श्रवण का अंतिम संस्कार Shravan’s funeral  किया और अपने जीवन की अंतिम सांसें लीं। मृत्यु से पूर्व उन्होंने दशरथ को यह शाप दिया कि जिस प्रकार वे पुत्र वियोग में मर रहे हैं, उसी प्रकार दशरथ की मृत्यु भी पुत्र वियोग में होगी।

कर्म का फल और दशरथ की मृत्यु

महाराज दशरथ ने कौशल्या King Dasharatha and Kaushalya से कहा कि वही शाप आज साकार हो रहा है। श्रीराम का वनवास और उनका असहनीय वियोग उसी पूर्व कर्म का परिणाम है। इस प्रकार रामायण हमें यह सिखाती है कि कोई भी कर्म, चाहे अनजाने में किया गया हो, अपने फल के बिना नहीं रहता। धर्म, संयम और करुणा ही मानव जीवन का सच्चा मार्गदर्शन करते हैं।

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