The Hindu Temple

Thirukolakka Sapthapureeswarar Temple: जानिए, तिरुकोलक्का सप्तपुरेश्वर मंदिर के इतिहास और पौराणिक कथाओं के बारे में…

Thirukolakka Sapthapureeswarar Temple: भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में मंदिरों का एक विशिष्ट स्थान है, जो धार्मिक आस्था के केंद्र बिंदु के साथ-साथ कला, इतिहास और रीति-रिवाजों का प्रदर्शन भी करते हैं। तमिलनाडु (Tamil Nadu) के तंजावुर जिले में, तिरुकोलक्का, तिरुकोलक्का सप्तपुरेश्वर मंदिर का नाम है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर अपनी पौराणिक कथाओं और आयु के लिए प्रसिद्ध है। हमें इस मंदिर की पृष्ठभूमि, आध्यात्मिक महत्व और कथा के बारे में बताएँ।

Thirukolakka sapthapureeswarar temple
Thirukolakka sapthapureeswarar temple

मंदिर और उसके स्थल का अवलोकन

तमिलनाडु के तंजावुर जिले में, कावेरी नदी के तट के पास, तिरुकोलक्का सप्तपुरेश्वर मंदिर स्थित है। तमिल शैव परंपरा में इस मंदिर का एक विशिष्ट स्थान है और यह चोल-युगीन निर्माण का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। तमिल संतों द्वारा रचित भक्ति गीतों में सूचीबद्ध 275 प्रतिष्ठित शिव मंदिरों में से एक पडल पेट्रा स्थलम भी है। मंदिर की विशिष्ट वास्तुकला इसके नाम, तिरुकोलक्का में झलकती है, जो तमिल शब्द कोलम से लिया गया है, जिसका अर्थ है आकृति या संरचना। हालाँकि, सप्तपुरेश्वर भगवान शिव (Lord Shiva) को सप्तऋषियों, या सात ऋषियों के देवता के रूप में संदर्भित करता है।

उत्पत्ति और पौराणिक कथा

तिरुकोलक्का सप्तपुरेश्वर मंदिर (Thirukolakka Sapthapureeswarar Temple) की स्थापना के बारे में एक रोचक कथा प्रचलित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में सात ऋषि तपस्या करने के लिए इस क्षेत्र में आए थे। उनकी गहन भक्ति और तपस्या के कारण, भगवान शिव ने उन्हें यहाँ स्वयंभू शिवलिंग के रूप में अवतरित होने की क्षमता प्रदान की। सात ऋषियों के प्रति भगवान शिव की कृपा के रूप में, यह शिवलिंग सप्तपुरेश्वर के रूप में पूजनीय हो गया।

एक अन्य कथा के अनुसार, एक शिव भक्त अक्सर कावेरी नदी (Cauvery River) के तट पर स्नान किया करता था। एक दिन, नदी में डुबकी लगाते समय, उसकी नज़र एक पत्थर पर पड़ी। करीब से देखने पर, उसने पाया कि वह स्वयं प्रकट हुआ शिवलिंग था। भगवान शिव की कृपा से इस चमत्कार को देखकर भक्त ने प्रतिदिन उस शिवलिंग की पूजा शुरू कर दी। चोल राजाओं ने समय के साथ अनुयायियों के बीच इसकी लोकप्रियता बढ़ने पर यहाँ एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया। चोल वंश, जो अपनी भव्यता और विस्तृत मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है, इस मंदिर की स्थापत्य शैली का प्रतीक है।

मंदिर की वास्तुकला

चोलकालीन स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण तिरुकोलक्का सप्तपुरेश्वर मंदिर है। मंदिर का मुख्य गोपुरम, या प्रवेश द्वार, भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और अन्य देवताओं की नक्काशी और मूर्तियों से युक्त कई मंजिला है। इन मूर्तियों में तमिल शैवों और शिव पुराण की कहानियों को दर्शाया गया है। मंदिर का गर्भगृह वह स्थान है जहाँ  स्थित है। मंदिर परिसर में एक पवित्र कुंड भी है जहाँ भक्त पूजा से पहले स्नान और शुद्धिकरण करते हैं। सप्तपुरेश्वर शिवलिंग मंदिर की दीवारें चोलकालीन शिल्पकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं। अन्य पौराणिक दृश्यों के अलावा, मूर्तियों में शिव-पार्वती विवाह और नटराज नृत्य की प्रतिमाएँ भी शामिल हैं। भक्त मंदिर के विशाल प्रांगण में भक्ति और ध्यान में लीन हो सकते हैं।

मंदिर का महत्व

तिरुकोलक्का सप्तपुरेश्वर मंदिर में माता पार्वती को पद्मिनी अम्मन और भगवान शिव को सप्तपुरेश्वर के रूप में पूजा जाता है। भक्तगण विशेष रूप से महाशिवरात्रि, कार्तिक पूर्णिमा और सावन (Mahashivratri, Kartik Purnima and Sawan) के महीने में मंदिर में उमड़ पड़ते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर में सच्चे मन से की गई प्रार्थना भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करती है और उनके जीवन से नकारात्मकता और चुनौतियों को दूर करती है। इसके अलावा, मंदिर में कालसर्प दोष निवारण पूजा और अन्य ज्योतिषीय अनुष्ठान भी किए जाते हैं और भक्तों द्वारा इन्हें बहुत पसंद किया जाता है। इस मंदिर पर तमिल शैव परंपरा का गहरा प्रभाव है।

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