कौन हैं कीर्तिमुख, राक्षस होकर भी क्यों पूजे जाते हैं देवताओं से अधिक, जानिए पूरी कहानी
कीर्तिमुख: क्या आप सोच सकते हैं कि कोई राक्षस आपके घर या मंदिर की सुरक्षा का दायित्व निभा रहा हो? यह सुनने में असामान्य जरूर लगता है, लेकिन आपने इस राक्षस की मूर्ति या तस्वीर जरूर देखी होगी। हालांकि, इसके नाम और महिमा से अनजान हो सकते हैं। मंदिरों में आमतौर पर देवता, उनके गण या अवतार द्वारपाल के रूप में मंदिरों (Temples) की रक्षा करते हैं। जैसे भैरव महाराज, गरुड़ भगवान, और रामदूत हनुमान। लेकिन आज हम चर्चा कर रहे हैं एक अनोखे राक्षस की, जिसका नाम है कीर्तिमुख।
कीर्तिमुख कौन है और क्यों है खास?
कीर्तिमुख एक ऐसा राक्षस है, जिसकी पूजा देवताओं की तरह होती है। यह घर और मंदिरों की सुरक्षा करता है, बशर्ते इसे विधिवत स्थापित किया जाए। लोग कीर्तिमुख की तस्वीर या मूर्ति को अपने घरों के मुख्य द्वार या दीवारों पर लगाते हैं ताकि नकारात्मक शक्तियां Negative Powers) प्रवेश न कर सकें।
कीर्तिमुख की उत्पत्ति की पौराणिक कथा
एक बार भगवान शिव गहन ध्यान में लीन थे। तभी राहु, जो अपनी शक्तियों के घमंड में चूर था, उसने शिव के सिर पर विराजमान चंद्रमा को ग्रहण लगा दिया। शिवजी को यह देखकर क्रोध आ गया। गुस्से में उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोली और राहु का अहंकार (Arrogance) तोड़ने के लिए अपने ही कण से कीर्तिमुख की उत्पत्ति की।
शिवजी ने कीर्तिमुख को आदेश दिया कि वह राहु को खा जाए। राहु इस आदेश से घबरा गया और शिवजी के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा। शिवजी ने राहु को क्षमा कर दिया। इसके बाद, कीर्तिमुख ने शिवजी से पूछा, “प्रभु, अब मेरी भूख कैसे शांत होगी?”
शिवजी ने ध्यान में रहते हुए कहा, “तुम खुद को ही खा लो।” यह सुनकर कीर्तिमुख ने अपने शरीर को खाना शुरू कर दिया। जब शिवजी का ध्यान टूटा, तो उन्होंने देखा कि कीर्तिमुख ने अपना पूरा शरीर खा लिया है और केवल उसका मुख और हाथ बचे हैं।
शिवजी का वरदान और कीर्तिमुख की महिमा
यह देखकर शिवजी ने कहा, “मैं तुमसे प्रसन्न हूं। आज से तुम्हारा स्थान हर मंदिर और घर के बाहर होगा। तुम वहां की सारी नकारात्मक शक्तियों, द्वेष और क्रोध को खा जाओगे।” इसी वरदान के बाद से कीर्तिमुख की पूजा देवताओं की तरह होने लगी।
भारतीय मंदिरों में मुख्य द्वार या गर्भगृह के द्वार पर कीर्तिमुख का धड़रहित डरावना (Torsoless Horror) सिर देखने को मिलता है। यह सिर न केवल संरक्षक का कार्य करता है, बल्कि इसे शुभ संकेत भी माना जाता है।
एक अन्य कथा: योगी और कीर्तिमुख
कुछ मान्यताओं के अनुसार, एक योगी था जिसने अपनी योग शक्ति से अनेक शक्तियां प्राप्त कर ली थीं। लेकिन उसे अपनी शक्तियों का घमंड हो गया और वह शिवजी का अपमान करने लगा। शिवजी ने क्रोधित होकर एक राक्षस की रचना की और उसे आदेश दिया कि वह योगी को खा जाए।
योगी ने शिवजी के चरणों में गिरकर क्षमा मांगी। शिवजी ने उसे माफ कर दिया, लेकिन इस घटना के बाद उन्होंने कीर्तिमुख को घरों और मंदिरों (Houses and Temples) का रक्षक बना दिया।
कीर्तिमुख की विशेषताएं और मान्यता
मुख की अनोखी छवि:
कीर्तिमुख का डरावना सिर, बड़े-बड़े दांत और चौड़ी आंखें उसके भयावह रूप को दर्शाते हैं।
सुरक्षा का प्रतीक:
कीर्तिमुख नकारात्मक शक्तियों और बुरी नजर को घर और मंदिर से दूर रखता है।
आध्यात्मिक महत्व:
कीर्तिमुख न केवल रक्षक है, बल्कि यह हमें घमंड और अहंकार के परिणामों की शिक्षा भी देता है।
आज कीर्तिमुख की मान्यता
भारतीय संस्कृति में कीर्तिमुख को शुभता का प्रतीक माना जाता है। लोग इसे अपने घर के मुख्य द्वार या मंदिरों के बाहर स्थापित करते हैं। यह मान्यता है कि जहां कीर्तिमुख होता है, वहां बुरी शक्तियां प्रवेश नहीं कर सकतीं।
निष्कर्ष
कीर्तिमुख की कथा हमें सिखाती है कि शिवजी का यह राक्षस, जो स्वयं को खा गया, न केवल घमंड को मिटाने का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि हर जीव का कोई न कोई उद्देश्य होता है। यह पौराणिक चरित्र आज भी हमारी संस्कृति और आध्यात्मिकता (Culture and Spirituality) का अभिन्न हिस्सा बना हुआ है।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न):
कीर्तिमुख कौन है?
कीर्तिमुख एक पौराणिक राक्षस है, जिसे भगवान शिव ने राहु के घमंड को तोड़ने के लिए उत्पन्न किया था।
कीर्तिमुख की पूजा क्यों की जाती है?
यह घर और मंदिरों की रक्षा करता है और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करता है।
कीर्तिमुख का स्वरूप कैसा होता है?
इसका सिर बड़ा, डरावना और दांत तेज होते हैं, जबकि शरीर का अधिकांश हिस्सा गायब होता है।
कीर्तिमुख की स्थापना कहां की जाती है?
इसे घर और मंदिर के मुख्य द्वार या दीवारों पर स्थापित किया जाता है।
कीर्तिमुख की कथा से क्या शिक्षा मिलती है?
यह कथा घमंड और अहंकार के विनाश और आत्म-नियंत्रण की महत्ता को समझाती है।