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Shivling Puja Rules For Women: जानिए, क्या महिलाओं को शिवलिंग छूना चाहिए या नहीं…

Shivling Puja Rules For Women: भारत देश में धार्मिक रीति-रिवाज, संस्कृति और धर्म जनमानस में गहराई से समाए हुए हैं। ऐसी परिस्थितियाँ भगवान शिव (Lord Shiva) के लिए शिवलिंग की पूजा के अनूठे महत्व को उजागर करती हैं। हालाँकि, महिलाओं के शिवलिंग को छूने की अनुमति है या नहीं, यह विषय वर्षों से चला आ रहा है। क्या शिवलिंग को छूना वर्जित है, खासकर मासिक धर्म के दौरान? क्या यह प्रतिबंध सामाजिक संरचना से उपजा है या धर्मग्रंथों से जुड़ा है? चूँकि वर्तमान काल में महिलाएँ जीवन के कई क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं, इसलिए इन धार्मिक मुद्दों पर नए सिरे से विचार और व्याख्या करना भी आवश्यक है।

Shivling puja rules for women
Shivling puja rules for women

आस्था-आधारित मान्यताएँ

प्राचीन काल से ही शिवलिंग को ब्रह्मांड की उत्पत्ति, पालन और विनाश का प्रतीक माना जाता रहा है। पारंपरिक ज्ञान के अनुसार, महिलाओं को शिवलिंग को छूने से बचना चाहिए, खासकर मासिक धर्म के दौरान। कुछ धार्मिक विद्वानों (Religious Scholars) के अनुसार, स्त्रियाँ “सृजन” की शक्ति हैं, जबकि शिव “वैराग्य” और “तपस्या” के प्रतीक हैं। परिणामस्वरूप, शिवलिंग और स्त्रियों के बीच एक अनोखी दीवार स्थापित हो गई।

हालाँकि, यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि यह प्रतिबंध अक्सर किसी विशिष्ट धार्मिक आदेश के बजाय “लोक विश्वास” से उपजा होता है। वेदों या उपनिषदों में महिलाओं द्वारा शिवलिंग को छूने पर प्रतिबंध का स्पष्ट उल्लेख नहीं है।

क्या मासिक धर्म पर रोक लगाना उचित है?

भारतीय संस्कृति (Indian Culture) में, मासिक धर्म को आज भी नापसंद किया जाता है। धर्म की आड़ में महिलाओं को पूजा-पाठ और मंदिर प्रवेश जैसी धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने से मना किया जाता है। हालाँकि, वास्तव में, यह कोई अशुद्धि नहीं, बल्कि एक सामान्य जैविक क्रिया है। जब विज्ञान और अध्यात्म को मिला दिया जाता है, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि ईश्वर ने ही इस प्रक्रिया की रचना की है। इसलिए, महिलाओं को ईश्वर के पास जाने से कैसे रोका जा सकता है?

आज के कई संतों, शिक्षाविदों और आध्यात्मिक गुरुओं के अनुसार, मासिक धर्म एक ऐसी शक्ति है जिसे स्वीकार किया जाना चाहिए, न कि निषिद्ध किया जाना चाहिए।

ये नियम किसने बनाए?

समय के साथ, पितृसत्तात्मक विचारधारा (Patriarchal Ideology) ने कई सामाजिक नियमों के निर्माण को प्रभावित किया। शिव मंदिर ही एकमात्र ऐसे स्थान नहीं थे जहाँ महिलाओं को पूजा स्थलों में प्रवेश करने से हतोत्साहित किया जाता था। हर धर्म में, महिलाओं को पूजा स्थलों में कुछ हद तक सीमित रखा गया था, चाहे वे चर्च हों, मस्जिद हों या अन्य पूजा स्थल। हालाँकि, जैसे-जैसे समाज विकसित हो रहा है, यह और भी ज़रूरी होता जा रहा है कि हम धार्मिक विचारों को सही ढंग से समझें।

परिवर्तनोन्मुखी समाज

अब समय बदल रहा है। आजकल, महिलाएँ कई मंदिरों में शिवलिंग की पूजा, अभिषेक और शिवलिंग (Puja, Abhishekam and Shivling) का स्पर्श कर सकती हैं। काशी विश्वनाथ से लेकर दक्षिण भारत के मंदिरों तक, महिलाओं की भागीदारी अब पहले से कहीं अधिक स्पष्ट है। यह बदलाव दर्शाता है कि भगवान शिव की पूजा विशुद्ध रूप से आस्था का प्रश्न है, लिंग का नहीं। ‘अर्धनारीश्वर’, स्वयं शिव, पुरुष और स्त्री शक्तियों के संतुलन का प्रतीक हैं। इस मामले में, पुरुष और स्त्री शिव भक्ति का भेद शिव के अपने दर्शन के विपरीत है।

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