Achleshwar Mahadev Temple: 24 घंटे में दो बार बदलता है इस शिवलिंग का रंग, जानें अचलेश्वर महादेव मंदिर का रहस्य और इतिहास
Achleshwar Mahadev Temple: राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू है। यहाँ प्रसिद्ध और ऐतिहासिक अचलेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। इस मंदिर में भगवान शिव के अंगूठे की पूजा की जाती है। मंदिर के शिवलिंग का रंग बदलता रहता है।

माउंट आबू में भगवान शिव को समर्पित कई मंदिर हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध अचलेश्वर महादेव मंदिर (Achleshwar Mahadev Temple) है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भोलेनाथ के अंगूठे के नीचे एक गड्ढा है जो कभी नहीं भरता। यहाँ शिवलिंग के ऊपर पानी चढ़ता हुआ देखना असंभव है। यहाँ भक्त भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा करते हैं। इस लेख में, हम मंदिर के रहस्य को उजागर करेंगे।
महादेव के दाहिने अंगूठे की पूजा
पौराणिक कथाओं (Mythology) के अनुसार, हिमालय में भगवान शंकर की तपस्या तब भंग हुई जब अर्बुद पर्वत पर स्थित नंदीवर्धन कांपने लगा। क्योंकि यह पर्वत भगवान शिव के प्रिय बैल नंदी और कामधेनु गाय का भी निवास था। भगवान शंकर ने नंदी, गाय और पर्वत को बचाने के लिए हिमालय से ही अपना अंगूठा फैलाकर अर्बुद पर्वत को स्थिर किया था।
शिवलिंग का रंग बदलता रहता है
स्थानीय लोगों और श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी के अनुसार, यहाँ स्थापित शिवलिंग हर 24 घंटे में दो बार रंग बदलता है। यह शिवलिंग कभी केसरिया तो कभी काले रंग का दिखाई देता है। जलहरी का भी बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि गर्मियों में अगर बारिश नहीं हो रही हो, तो जलहरी में पानी भरने से जल्द से जल्द बारिश होती है। यहाँ भक्तों को उनकी हर माँग पूरी होती है। जब उनकी माँग पूरी हो जाती है, तो वे मंदिर की जलहरी में दूध और जल भर देते हैं।
अचलेश्वर महादेव मंदिर (Achleshwar Mahadev Temple) का रहस्य
धौलपुर से पाँच किलोमीटर दूर चंबल नदी के किनारे घाटियों में स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर की आयु और इसकी स्थापना तिथि अज्ञात है। हालाँकि, श्रद्धालुओं की मानें तो यह लगभग एक हज़ार साल पुराना माना जाता है। मिट्टी में शिवलिंग (Shiva Linga) की गहराई जानने के लिए एक बार खुदाई भी की गई थी। कई दिनों तक खुदाई के बाद भी लोग खुदाई के अंत तक नहीं पहुँच पाए, इसलिए इसे रोक दिया गया था। इस शिवलिंग की गहराई का अभी तक आकलन नहीं किया जा सका है। अतीत में भी राजा-महाराजाओं ने इस शिवलिंग की खुदाई की थी, लेकिन जब शिवलिंग का कोई अंत नहीं मिला, तो खुदाई रोक दी गई थी।
उत्कृष्ट कारीगरी
यह मंदिर वाकई बहुत सुंदर बना है। इस मंदिर के बारे में एक प्रसिद्ध किंवदंती के अनुसार, राजा राजसिंहासन पर बैठकर प्रजा के अधिकारों की रक्षा करने और अचलेश्वर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त करने की शपथ लेते थे। मंदिर परिसर में द्वारकाधीश मंदिर (Dwarkadhish Temple) भी है। गर्भगृह के बाहर वराह, नरसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध और कल्कि अवतार की विशाल काले पत्थर की मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं।