मधु-कैटभ कौन थे? भगवान विष्णु ने कैसे किया उनका संहार?
Madhu-Kaitabh: संसार की गति को बनाए रखने वाली शक्ति भगवती महामाया हैं। उनके प्रभाव से ही जीवों के मन में ममता, मोह और भक्ति उत्पन्न होते हैं। महामाया की योगनिद्रा में भगवान विष्णु भी चले जाते हैं, जिससे सृष्टि संचालन (Creation Operations) की प्रक्रिया प्रभावित होती है। ज्ञानी से लेकर साधारण प्राणी तक, सभी उनके प्रभाव में रहते हैं। वे ही इस चराचर जगत की रचना करती हैं, पालन करती हैं और आवश्यक होने पर संहार भी करती हैं। प्रसन्न होने पर वे मुक्ति का वरदान देती हैं और संसार के बंधनों से मुक्ति दिलाने वाली परा-विद्या भी वही हैं।

मधु-कैटभ असुरों की उत्पत्ति
दुर्गा सप्तशती में वर्णित कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु योगनिद्रा (Lord Vishnu Yoga Nidra) में लीन थे, तब उनके कान के मैल से दो भयानक असुर उत्पन्न हुए—मधु और कैटभ। ये दोनों अत्यंत शक्तिशाली और अहंकारी थे। उत्पन्न होते ही उन्होंने चारों ओर विनाश फैलाना शुरू कर दिया और भगवान विष्णु के नाभिकमल में विराजमान ब्रह्माजी को मारने के लिए आगे बढ़े।
ब्रह्माजी की प्रार्थना और माँ महामाया का प्रकट होना
भगवान विष्णु को सोया हुआ देख ब्रह्माजी चिंतित हो गए। उन्हें असुरों के अत्याचार से बचने का कोई उपाय नहीं दिखा, इसलिए उन्होंने भगवान विष्णु को जगाने के लिए माँ योगनिद्रा की स्तुति की। उन्होंने कहा—
“हे देवी! आप ही सृष्टि की धारक और संचालक हैं। आप ही पालन करती हैं और संहार रूप में विनाश भी करती हैं। कृपा कर भगवान विष्णु को जगाइए और उनमें इन भयंकर असुरों का वध करने की शक्ति उत्पन्न करिए।”
ब्रह्माजी की प्रार्थना सुनकर माँ महामाया प्रकट हुईं और भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की योगनिद्रा समाप्त कर दी। जैसे ही भगवान विष्णु जागे, उन्होंने देखा कि मधु-कैटभ ब्रह्माजी पर हमला करने वाले हैं। उन्होंने तुरंत उन असुरों से युद्ध छेड़ दिया।
भगवान विष्णु और मधु-कैटभ का भयंकर युद्ध
युद्ध बहुत भीषण हुआ। मधु-कैटभ असुर भी अपार शक्ति से युक्त थे और भगवान विष्णु को कड़ी टक्कर दे रहे थे। यह युद्ध हजारों वर्षों तक चला, लेकिन कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था।
आखिरकार, माँ महामाया ने अपने मायावी प्रभाव से असुरों को मोह में डाल दिया। मोहग्रस्त (Infatuated) होकर असुर अभिमान से भर गए और उन्होंने भगवान विष्णु से कहा—
“हे विष्णु! हम तुम्हारी वीरता से अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम हमसे कोई वरदान मांगो।”
भगवान विष्णु ने मुस्कुराते हुए कहा—
“यदि तुम मुझसे प्रसन्न हो, तो मेरे ही हाथों मारे जाओ।”
असुरों ने चारों ओर देखा, तो केवल जल ही जल दिखाई दिया। उन्होंने सोचा कि यदि पृथ्वी का कोई ठोस स्थान होता, तो वहाँ मृत्यु स्वीकार कर लेते। तब उन्होंने भगवान विष्णु से कहा—
“जहाँ सूखी भूमि हो, वहीं हमारा वध करो।”
भगवान विष्णु द्वारा मधु-कैटभ का संहार
भगवान विष्णु ने तुरंत अपनी माया से एक उपाय निकाला। उन्होंने अपनी विशाल जंघाओं को सूखी भूमि के रूप में प्रस्तुत किया और मधु-कैटभ को वहीं गिराकर अपने चक्र से उनका सिर काट दिया। इस प्रकार इन असुरों का अंत हुआ और देवताओं को भयमुक्ति मिली।
माँ महामाया का महत्त्व
इस कथा के माध्यम से यह सिद्ध होता है कि माँ महामाया (Mahamaya) ही इस जगत को चलाने वाली शक्ति हैं। वे समय-समय पर प्रकट होकर अधर्म का नाश करती हैं और धर्म की रक्षा करती हैं। उनका स्वरूप विभिन्न रूपों में संसार में व्याप्त रहता है, जिससे वे असुर शक्तियों का संहार करती हैं और भक्तों को आश्रय देती हैं।