Story of Surya Dev: जानें सूर्यदेव के जन्म से क्यों मचा था हाहाकार, महादेव ने त्रिशूल से किसे किया था खंड-खंड…
Story of Surya Dev: हिन्दू धर्म में सूर्य देव को भास्कर और आदित्य के नाम से भी जाना जाता है। सूर्य देव और चंद्रमा पृथ्वी पर सबसे स्पष्ट देवता माने जाते हैं, जिन्हें मनुष्य उनके सर्वोच्च दिव्य रूप में देख सकते हैं। वेदों में भास्कर को ब्रह्माण्ड की आत्मा कहा गया है, क्योंकि सभी जीव और निर्जीव वस्तुएँ इसी दिव्य प्रकाश से जीवन प्राप्त करती हैं। सूर्य देव पृथ्वी पर जीवन का स्रोत, ऊर्जा और प्रकाश हैं। भारत में वैदिक काल से ही सूर्य देव की पूजा और उनके प्रति भक्ति का प्रचलन रहा है। वेदों और पुराणों में उनके तेज, प्रभाव, आराधना और मंत्रों का विस्तार से वर्णन किया गया है। ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रहों में सूर्य को राजा माना गया है।

- Story of Surya Dev
सूर्य (Surya) देव की उत्पत्ति
मार्कण्डेय पुराण में बताया गया है कि ब्रह्माण्ड के आरंभ में पूर्ण अंधकार था और कोई प्रकाश नहीं था। उसी समय ब्रह्मा देव कमल के समान गर्भ से प्रकट हुए। ब्रह्मा जी के होठों से पहला शब्द ॐ निकला, जो सूर्य देव के तेज की मंद अभिव्यक्ति थी। इस प्रथम शब्द से ब्रह्मा के चार मुखों के माध्यम से चारों वेद (The Four Vedas) उत्पन्न हुए और ॐ के दिव्य प्रकाश में विलीन हो गए।
ब्रह्माण्ड का शाश्वत कारण: सूर्य देव और वैदिक तेज
ब्राह्मांड का शाश्वत कारण आदित्य या भास्कर ही हैं। यही वैदिक तेज ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, पालन और संहार का आधार है। ब्रह्मा जी ने सूर्य देव से अनुरोध किया कि वे अपना प्रचण्ड तेज संयमित रूप में प्रदर्शित करें। सूर्य देव ने अपनी शक्ति एकत्रित करके सूक्ष्म आभा (subtle aura) धारण की, जिससे ब्रह्माण्ड में संतुलन बना रहा। इस संतुलित ऊर्जा के माध्यम से जीवन, गति और सृष्टि के नियम कायम रहते हैं। सूर्य देव की यह दिव्य शक्ति सृष्टि के हर प्राणी और वस्तु में जीवन और ऊर्जा प्रवाहित करती है।
मरीचि, ऋषि कश्यप और अदिति का महत्व
मरीचि, ब्रह्मा जी के पुत्र, के पुत्र ऋषि कश्यप ने अदिति से विवाह किया। इसी समय ब्रह्माण्ड की सृष्टि और उसकी जटिल संरचना का आरंभ हुआ। अदिति ने अत्यंत कठिन तपस्या (extreme penance) की, जिससे उनकी आंतरिक ऊर्जा और भक्ति शक्ति प्रबल हुई। उनकी घोर तपस्या ने सूर्य देव को अत्यंत प्रसन्न किया।
भास्कर देव ने अपनी दिव्य किरण सुषुम्ना के माध्यम से अदिति के गर्भ में प्रवेश किया और उनकी प्रार्थना स्वीकार की। अदिति गर्भवती होने के बावजूद चंद्रायण जैसे कठिन व्रत करती रहीं, जिससे उनके गर्भ में दिव्य ऊर्जा संचित हुई। यह ऊर्जा केवल उनके गर्भ में पल रहे शिशु के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे ब्रह्माण्ड के संतुलन (balance of the universe) और संरचना के लिए भी महत्वपूर्ण थी।
मार्तण्ड और विवस्वान: सूर्य देव का दिव्य अंश
अदिति के गर्भ से जन्मे शिशु को मार्तण्ड कहा गया और वह भास्कर के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। ब्रह्म पुराण के अनुसार, अदिति के गर्भ से उत्पन्न सूर्य देव के दिव्य अंश को विवस्वान कहा जाता है। विवस्वान वैदिक शक्ति और ब्रह्माण्डीय नियमों का प्रतीक हैं। उनके दिव्य प्रकाश और ऊर्जा (Divine light and energy) ने सभी प्राणियों और ब्रह्माण्ड में संतुलन स्थापित किया।
विवस्वान की उपस्थिति से ही ऋतुएँ, ग्रह, नक्षत्र और अन्य खगोलीय पिंड (celestial bodies) अपने निर्धारित मार्ग पर संचालित होते हैं। सूर्य देव के तेज से ही ज्ञान, शक्ति और धर्म का संचार होता है। विवस्वान ब्रह्माण्ड की संरचना और जीवन के चक्र में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं।
सूर्य देव का वैदिक महत्व
सूर्य देव केवल आकाशीय देवता नहीं हैं, बल्कि ब्रह्माण्डीय ऊर्जा, जीवन और संतुलन के प्रतीक हैं। उनकी पूजा, स्तुति और ध्यान से जीवन में ऊर्जा, प्रकाश और ज्ञान का संचार होता है। वैदिक शास्त्रों में उनका महत्व अत्यधिक माना गया है, क्योंकि सूर्य देव सृष्टि, जीवन और समय के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं।
देव की आराधना से न केवल व्यक्तिगत जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है, बल्कि यह ब्रह्माण्डीय नियमों और प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में भी मदद करती है। उनके तेज से ही ऋतुएँ, मौसम और ग्रहों की गति नियंत्रित होती है। यही कारण है कि हिन्दू धर्म में सूर्य देव को समय, ज्ञान और शक्ति का स्रोत माना गया है

