Narasimha Temple Simhachalam: जहां सालभर चंदन में ढके रहते हैं भगवान, सिर्फ अक्षय तृतीया पर देते हैं मनमोहक दर्शन
Narasimha Temple Simhachalam: सिंहाचलम स्थित श्री वराह लक्ष्मी नरसिंह स्वामी मंदिर में बुधवार सुबह निर्माणाधीन दीवार गिर गई, जिससे श्रद्धालुओं की मौत हो गई और कुछ अन्य घायल हो गए। वार्षिक चंदनोत्सव के दौरान श्रद्धालु 300 रुपये की कतार में खड़े थे, तभी यह हादसा हुआ। आंध्र प्रदेश का सिंहाचलम मंदिर विशाखापत्तनम से लगभग 16 किलोमीटर दूर है। (Simhachalam Temple Accident)

सिंहचलम मंदिर की अनूठी चंदन परंपरा
सिंहाचलम मंदिर आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम जिले में सिंहाचल पर्वत की चोटी पर स्थित है। इस मंदिर में भगवान विष्णु के वराह और नरसिंह अवतारों के संयुक्त रूप की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु का यह स्वरूप देवी लक्ष्मी के साथ विराजमान है। भगवान नरसिंह का निवास (Abode of Lord Narasimha) इस मंदिर का दूसरा नाम है। मंदिर की एक अनोखी परंपरा यह है कि भगवान की मूर्ति साल भर चंदन से ढकी रहती है। केवल अक्षय तृतीया के दौरान, जब भक्तों को असली मूर्ति के दर्शन करने का अनूठा अवसर मिलता है, यह आवरण हटाया जाता है। इस दिन मंदिर में वर्ष का सबसे बड़ा उत्सव मनाया जाता है।
प्रह्लाद और नरसिंह अवतार से जुड़ा पौराणिक इतिहास
इस मंदिर का इतिहास सतयुग के प्रसिद्ध भक्त प्रह्लाद से जुड़ा है। राक्षस राजा हिरण्यकश्यप (Narasimha Avatar History) का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। उसे बार-बार प्रताड़ित करने के बाद, हिरण्यकश्यप ने अंततः अपनी बहन होलिका की सहायता से उसे जला दिया। प्रह्लाद को आग से कोई नुकसान नहीं हुआ, लेकिन होलिका स्वयं घायल हो गई। इसी घटना की स्मृति में होली का त्योहार मनाया जाता है। प्रह्लाद की रक्षा और हिरण्यकश्यप का नाश करने के लिए, भगवान विष्णु ने नरसिंह का रूप धारण किया।
साल में सिर्फ़ एक बार ही क्यों हटाया जाता है चंदन को मूर्ति से?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, हिरण्यकश्यप के वध के बाद भक्त प्रह्लाद ने भगवान नरसिंह के सम्मान में इस मंदिर का निर्माण कराया था। हालाँकि, यह मंदिर धीरे-धीरे ज़मीन में धंस गया। सदियों बाद, राजा पुरुरवा और उनकी पत्नी उर्वशी उड़ रहे थे, तभी किसी अदृश्य शक्ति से उनका विमान सिंहाचल क्षेत्र में उतरा।
राजा ने देखा कि भगवान की मूर्ति आंशिक रूप से ज़मीन में धँसी हुई थी। आकाशवाणी ने उन्हें निर्देश दिया कि जब वे मूर्ति को हटाकर उसकी धूल साफ़ करने का प्रयास करें, तो उस पर चंदन का लेप (Chandan Removal Tradition) लगाएँ। इसके अतिरिक्त, उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि वर्ष में केवल एक बार, वैशाख माह की तृतीया तिथि को, मूर्ति से यह लेप हटाया जाए। तब से, यह प्रथा आज तक चली आ रही है।