देहरादून : जानिए इस बार किन घाटों पर होगी पूजा...

हिना आज़मी/देहरादून। सूर्य की उपासना का महापर्व छठ (Chhath Puja 2022) नहाय-खाय के साथ प्रारम्भ हो चुका है। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में भी यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इसकी सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। देहरादून के घाट सज चुके हैं। 36 घंटे के इस निर्जला व्रत से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। माना जाता है कि संतान की मंगलकामना के लिए यह पर्व अहम है। सूर्य की उपासना का सबसे बड़ा त्योहार छठ महापर्व नहाय-खाय के साथ प्रारम्भ होता है। देहरादून में मालदेवता, ब्रह्मपुरी, टपकेश्वर, चंद्रबनी, प्रेमनगर, हरबंसवाला आदि स्थानों पर छठ महापर्व मनाया जाता है।
संतान की प्राप्ति और मंगलकामना के लिए क्यों खास है छठ महापर्व?
शनिवार को नहाय-खाय के साथ स्त्रियों ने व्रत प्रारम्भ किया। छठ महापर्व में पहले दिन नहाय-खाय में व्रती महिलाएं कद्दू-भात ग्रहण करती हैं। दूसरे दिन खरना होता है, जिसमें खीर और केला चढ़ाया जाता है फिर संध्या अर्घ्य और उसके अगले दिन सुबह सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठ महापर्व आस्था से जुड़ा एक ऐसा त्योहार है, जिसमें व्रती महिलाएं 36 घंटे का निर्जला उपवास रखती हैं।
मान्यता है कि छठ महापर्व में 36 घंटे का उपवास करने वाले सच्ची श्रद्धा और आस्था के साथ इसलिए व्रत रखते हैं ताकि परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहे। ब्रह्मांड को ऊर्जा और जीवन देने वाले सूर्य की उपासना इसलिए ही की जाती है। वहीं स्त्रियों के लिए त्योहार बहुत महत्व रखता है, खासकर उन स्त्रियों के लिए जो निःसंतान हैं या संतान की कुशल कामना चाहती हैं।
मान्यताओं के अनुसार, जिन स्त्रियों की गोद सूनी होती है, वह छठी मैया की उपासना करती हैं। क्षेत्रीय भाषा में षष्ठी देवी को ही छठी मैया बोला गया है। छठी मैया को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी माना जाता है, जो निःसंतान स्त्रियों की झोली भरती हैं। जिन स्त्रियों की संतान हैं, मैया उन्हें कुशल कामना का आशीर्वाद देकर दीर्घायु प्रदान करती हैं।
देहरादून निवासी सुप्रजा बताती हैं कि कार्तिक माह में सूर्य देव की उपासना करने की परंपरा है। इस महीने में सूर्य अपनी नीची राशि में होता है इसीलिए उसकी उपासना करने से स्वास्थ्य संबंधी परेशानी दूर होती है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को पूजा करने से संतान की उम्र लंबी होती है। उन्होंने बोला कि सामान्य तौर पर उगते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है लेकिन छठ महापर्व में पहले डूबते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है और उसके अगले दिन उगते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। महिलाएं जल में खड़े होकर उपासना करती हैं और उनकी इच्छा पूरी होती है।
संतोष बताती हैं कि छठ पर्व बिहार, पूर्वी यूपी में मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि नहाय-खाय के साथ छठ पर्व प्रारम्भ होता है, जो चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य और उपासना के साथ समापन होता है।
बिहारी महासभा के सचिव चंदन कुमार झा ने जानकारी दी है कि महासभा द्वारा छठ की पूरी तैयारियां की जा चुकी हैं। बड़े पैमाने पर घाटों की सफाई की जा रही है, जिसके लिए एक अलग टीम गठित की गई है। लगभग सभी घाटों की सफाई हो चुकी है। टपकेश्वर महादेव मंदिर, प्रेमनगर, चंद्रमणि और मालदेवता में कमेटी के साथ सुलभ स्वच्छता की टीम ने भी घाटों को साफ करने का काम किया है।